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 वृद्धि कारक
1. संजीवक

100 किलो गाय का गोबर, 100 लीटर गौमूत्र, 500 ग्राम गुड को 500 लीटर क्षमता वाले बंद मुह वाले ड्रम में 300 लीटर पानी के साथ मिश्र करें। इसे दस दिन तक सड़ने दें। बाद में इसमे 20 गुना पानी मिलाकर 1 एकड़ जमीन में छिड़के या सिंचाई के साथ दें।


2. जीवामृत


10 किलो गाय का ताजा गोबर, 10 लीटर गौमूत्र, 2 किलो गुड, 2 किलो दलहन का आटा, 1 किलो जंगल की मिट्टी - सभी 200 लीटर पानी में मिलाकर 5 से 7 दिन तक सड़ने दें। नियमित रूप से इस मिश्रण को घड़ी की सुई की दिशा में हिलाएँ। इस मिश्रम को एक एकड़ में सिचाई के साथ दें।


3. अमृतपानी


100 किलो गाय के ताजा गोबर में 500 ग्राम शहद अच्छी तरह मिलाएँ। फिर उसमें 250 ग्राम देशी गाय के घी डालें और ज्यादा तेजी से मिलाएँ। उसमें 200 लीटर पानी डालें। बुवाई से पहले इस मिश्रण को एक एकड़ में जमीन पर छिड़के या सिंचाई के साथ दें। एक महीने बाद सिंचाई के साथ फसल को फिरसे अमृतपानी दें।


4. पंचगव्य


5 किलो गाय का ताजा गोबर, 3 लीटर गौमूत्र, 2 लीटर गाय का दूध, 2 लीटर गाय की छाछ और 1 किलो देशी गाय का घी अच्छी तरह से मिलाकर 7 दिन तक सड़ने दें। हररोज दिन में दो बार हिलाएँ। इस तरह से तैयार किए हुये 3 लीटर पंचगव्य को 100 लीटर पानी में मिलाकर जमीन पर छिड़के। 20 लीटर पंचगव्य एक एकड़ के लिए पर्याप्त है।


5. समृद्ध पंचगव्य (दशगव्य)


सामग्री: 5 किलो गाय का ताजा गोबर, 3 लीटर गौमूत्र, 2 लीटर देशी गाय का दूध, 2 लीटर छाछ, 1 लीटर देशी गाय का घी, 3 लीटर गन्ने का रस, 500 ग्राम गुड, 3 लीटर कच्चे नारियल का पानी, 12 केले (2 किलो), 2 लीटर अंगूर का रस।


गाय का गोबर और घी को 1 बरतन में मिलाकर तीन दिन तक सड़ने दें। बीच बीच में मिश्रण को हिलाते रहें। चोथे दिन बाकी की सारी चिजे मिलाकर 15 दिन तक सड़ने दें और दिन में दो बार हिलाएँ। इस तरह दशगव्य 18 दिन में तैयार हो जाता है। 3 से 4 लीटर दशगव्य 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 20 लीटर दशगव्य एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। दशगव्य से बीज उपचारण भी कर सकते है।


किट नियंत्रण


मिलिबग


10 लीटर पानीमें 50 से 75 मिली नींबू का रस मिलाकर छिड़काव करें। खट्टापन किट की शारीरिक क्रिया में अवरोधक होता है।


मिलिबग का प्रकोप दिखे तो 10 लीटर पानीमें 100 ग्राम नींबूका रस + 10 ग्राम खाने का चूना + 250 ग्राम गुड का घोल बनाकर lspray करे,


भूरा माहों

एक एकड़ में 10 किलो शण (सण) को चक्कीमें पिसाकर आटे को खेतमें फसल पर छिड़काव करें।


फसलमें रात को मशाल लेके घूमने से फूंदक व किट आग से आकर्षित होकर नष्ट होते है।




पत्ते खानेवाली इल्ली


खेत में बाजरे की रोटी के टुकड़े आदि खेत मे फैला दें। इनको खाने पक्षी आएंगे जो इल्ली भी खा जाएँगे।



इल्ली के नियंत्रण हेतु 15 लीटर पानीमें 300 मिली थोर (नागफनी /कैकट्स) का दूध मिश्रित करके छिड़काव करें।



500 ग्राम नीम के बीज की गिरि को 10 लीटर पानीमें मिलाकर रात भर भिगाऐ, फिर उसे छान कर उसमे 100 ग्राम साबुन का घोल मिलाकर छिड़के।


2 किलो हरें नीम के पत्ते व एक किलो खरपतवार को 10 लीटर पानी में रात भर भिगोयेँ, फिर उसे छानकर छिड़काव करें।



1 किलो नीम की खली (2-5 प्रतिशत तेल युक्त) को 10 लीटर पानी में

 रात भर भिगोयेँ। फिर उसे छानकर उसमे 100 ग्राम साबुन का घोल मिलाकर छिड़काव करें।


300 मिलीलीटर नीम के तेल को 10 लीटर पानी में मिलाकर देर तक घोलें, फिर इस घोल में 100 ग्राम साबुन का घोल मिलाकर छिड़काव करें।


1 किलो हरी नीम पत्ती और एक लीटर गोमूत्र (24 घंटे पुराना) को 10 लीटर पानी में मिलाकर रात भर रखे। फिर इसको छानकर छिड़काव करें।


150 ग्राम नींबू का रस और 150 ग्राम इमली का रस 15 लीटर पानीमें मिश्रित करके छिड़के। अगर असर कम होतो दूसरा छिड़काव तीन दिन बाद करें।


कीटनाशको का खर्च कम करने के लिए, पक्षियो के लिए 8-10 टी आकार के खंभे की व्यवस्था करने से हरी इल्ली का प्राकृतिक रूप से नियंत्रण हो सकता है।


15 लीटर के पंपमें 200 ग्राम के हिसाबसे तुलसी का रस मिलाकर पौधे पर 15 दिन के अंतर पर 2 से 3 बार छिड़काव करने से पत्ते खाने वाली इल्लीका प्रकोप कम होता है।



माहों

माहों आने की शुरुआत हो तब फसल पे राख़ का 4 दिन तक लगातार छिड़काव करे।

माहों के नियंत्रण हेतु राख़ को केरोसीन से उपचारित करके बने हुये मिश्रण को फसल पे सुबह में छिड़काव करे।


50 ग्राम नीम के पत्ते का रस और 50 ग्राम अरणी के पत्तेका रस घोल कर 20 लीटर पानी में मिश्रित करके सात दिन के अंतर पर दो बार छिड़के।


माहों नियंत्रण हेतु गौमूत्र @700 मिली / 15लीटर पानी के हिसाब से 7 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहें।


चार से पाँच फुट लंबी आंकड़े की 8 से 10 डालियाँ के पत्ते के साथ तोड़ें। इनको 200 लीटर पानी के ड्रम में डाले। लकड़ी से डालियों को ड्रम में ही तोड़े ताकि उनका दूध पानी में मिल जाएँ। उसके बाद आंकड़े की डालियाँ निकाल कर इस घोल का 1 एकड़ में सीधा छिड़काव करें।


पानी की केनाल में आकडे की डालियाँ रखे। जिससे उसका दूध खेत में फैलेगा और इससे माहों का नियंत्रण होता है।


रतनजोत के 3 किलो पत्ते 20 लीटर पानी में मिलाकर घोल 5 लीटर रहे तब तक उबालें। इस घोल को 15 लीटर पानी में 100 से 150 मिली के हिसाब से मिलाकर छिड़काव करने से माहों का नियंत्रण होता है।


माहों नियंत्रण हेतु खेत की मेड़ों (वट्टों ) पर शाम के समय नीम के पत्ते लाकर 4 से 5 जगह जलायें। धुवा से खेत में माहों का नियंत्रण होता है। लगातार 5 दिन तक धुवा करें।


नीम के बीज एकत्र करें। जब खेत में माहों दिखे तो इन बीज को धूप में सुखाकर, चक्की में पिसे। 500 ग्राम पिसे हुये नीम के पाउडर को 10 लीटर उबले हुये पानी में मिलाकर एक पात्र में बंध कर ठंडा होने दें। जब ठंडा हो जाएँ तब 15 लीटर पानी में 300 से 350 मिली घोल मिलाकर छिड़के।


गेंदे के 500 ग्राम फूल को 6 लीटर पानी में मिलाकर घोल आधा हो तब तक उबाले। घोल ठंडा होने के बाद 15 लीटर पानी में 1 लीटर घोल मिलाकर 4 दिन के अंतर पर दो बार छिड़काव करें।


बुवाई से पहले बीज को अरणी के घोल में आधा घंटा भिगो कर बुवाई करें।




फल खानेवाली इल्ली

मकोड़े से इल्ली नियंत्रण हेतु फल की शुरुवात होने के बाद 50 किलो गन्ने के रस निकाले हुये छिलके मंडप पे रक्खे।

फल खानेवाली इल्ली का प्रकोप कम करने हेतु, फसल की 14 कतार के बाद 1 कतार गेंदे लगाएँ, फसल से गेंदे 15 दिन बड़े होने चाहिए। मक्खी फूल पर अंडे देगी। ये फूल अंडे से साथ नष्ट करें या बाजार l


फल मक्खी

फलमक्खीका प्रकोप कम करने हेतु बागमे हरतरफ काली तुलसी लगाएँ। तुलसी के पत्तोंका मिथायल यूजीनोल रसायण नरमक्खी को आकर्षित करता है। उस पर नियमित किटनाशक का छिड़काव कर नष्ट करें।


सफ़ेद मक्खी

सफ़ेद मक्खी नियंत्रण हेतु 2 लीटर गौमूत्र + 2 लीटर खट्टी छाछ / 15 लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर 8 से 10 दिन के अंतर पर दो बार छिड़के।

सफ़ेद मक्खी नियंत्रण हेतु 2 किलो गुड और 3 से 3.5 किलो पानी मिलाकर घोल तैयार करके छान ले। उसके बाद 15 लीटर के पंप में 1 लीटर तैयार किया हुवा घोल और बाकी का पानी मिलाकर छिड़काव करे। ऐसा करने से सफ़ेद मक्खी फसल में न आकर गुड खाना शुरू करती है। इस तरह से फसल बच जाती है। इस तरह फसलमें 5 से 6 बार छिड़काव करे।


सफ़ेद मक्खी नियंत्रण हेतु 10 ग्राम हिंगकी पुड़िया पानी की निक में रखें। वे पानी से खेतमे फैलेगी और उसकी बदबूसे सफ़ेद मक्खी l


फली खानेवाली इल्ली

15 लीटर पानीमें 100 ग्राम नींबू के फूल को मिलाकर एक सप्ताह के अंतर पर दो बार छिड़काव करे।

टिड्डा

टिड्डा नियंत्रण हेतु 1 से 1.5 किलो प्याज छिलकर उसका रस निकाले। रस को 15 लीटर पानीमें मिलाकर छिड़के।


सफ़ेद गिड़ार, दीमक या अन्य जमीन में रहने वाले किट

तना या जड़ खानेवाली इल्ली नियंत्रण हेतु, एक थेली में 40 किलो प्याज लेकर उसको लकड़ी के बेट से कूट कर बारीक करें। इस थेली को खेत में पानी की नाली में रखे। 20 किलो प्याज 1 एकड़ के लिए पर्याप्त है।

दीमक नियंत्रण हेतु खेत में पानी की नाली में आकडे की डालियाँ रखे। जिससे उसका दूध खेत में फैलकर दीमक नियंत्रण करेगा।


कटुवा का प्रकोप दिखे तभी खेतमें अरणी के पत्ते और थोर (नागफनी / कैक्टस ) के पत्ते बिखरे हुए डाले कटुवा ये पत्ते खाकर मर जाते है।




रोग नियंत्रण

कालिया
जीरे की बुवाई के लिए क्यारियाँ बनाकर उसमें जीरा लगाएँ। उसके बाद इन क्यारियों में दँताली (दात्ती) चलायेँ। इससे क्यारियों में छोटी छोटी मेड बनेगी और जीरा मेड़ों पर उगेगा। दँताली चलाते समय ध्यान रहे की क्यारी की मुख्य मेड न टूटे। इस पद्धति से जीरा का अंकुरण अच्छा होता है। जीरे का तना पानी के सीधे संपर्क में नहीं आता और औस में भी पौधे के आसपास की जमीन सुखी रहती है। इससे कालिया व जड़सड़न से पौधे का बचाव होता है।

कालिया रोग की शुरुआत हो तभी 500 ग्राम नीम के पत्ते और 500 ग्राम सीताफली के पत्ते पाँच लीटर पानीमें डालकर चौथे हिस्से का हो जाए तभ तक उबाले। उसके बाद 500 ग्राम घोल / 15 लीटर पानी के हिसाबसे मिलाकर 4 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहे।


कालिया रोग नियंत्रण हेतु सुबह जल्दी उठकर दो इंसान आमने सामने सूती चादर पकड़ कर चलते चलते ओस दूर करे।


जब बादलयुक्त मौसम हो और सुबह के समय ओस पौधे पर दिखे तब रेत लेकर पौधे पर डाले। इस तरह खेतमें रेत डालने से पौधे पर की ओस नीचे गिर जाती है। ओस को रेत चूस लेती है, जिससे दो दिन तक ओस का असर नहीं रेहता।


जब बादलयुक्त मौसम हो और सुबह के समय ओस पौधे पर दिखे तब बाजरे का आटा लेकर पौधे पर डाले। इस तरह खेतमें बाजरे का आटा डालने से पौधे पर की ओस नीचे गिर जाती है। ओस को बाजरे का आटा चूस लेता है, जिससे दो दिन तक ओस का असर नहीं रहता।


नीम के नयें पत्ते, एलोवेरा और आकडे के पत्ते समान प्रमाण में लेकर रस निकाल लें। जब जीरे की फसल 30 दिन की हो तब उपरोक्त वनस्पति का 500 मिली रस और 5 ग्राम कपड़े धोने का पाउडर 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़के।


लाल सड़न

रातड़ा के रोग की असर लगे तो नियंत्रण हेतु एक एकड़में 10 किग्रा चूना, 100 किलो अरंड(रिंड) खाद और 100 किलो नमक मिक्स करके और कतारमें दे। 2 दिन बाद जरूरी खाद देने से रातड़ा का नियंत्रण होता है।


रतुवा

मूँगफली की बुवाई करने से पहले 20 किलो मूँगफली के बीज हेतु 250 ग्राम हिंग पाउडर से उपचारित करके बुवाई करेl

पत्ती मोड विषाणु

पीलूड़ी (Salvadora persica)/मेसवाक के पत्ते का पाउडर सब्जी की फसलमें कतारों के बीचमें डालने से फसल तंदूरस्त रहती है। विषाणु की असर कम होती है। धान्य वर्ग की फसल लगानी हो तभी गोबर खाद के साथ ये पाउडर का उपयोग करने से फायदा होता है।

पत्तीमोड विषाणु के जैविक नियंत्रण हेतु 5 gm हींग + 500 gm बाजरे के आटे की पुड़िया बनाके सिंचाई नालीमें 2-3 जगह रखें।


ब्लास्ट

एक एकड़ के नर्सरी जमीन पर 4 किलो राख और नमक का मिश्रण करके छिड़के।

उकठा

20 मिली थोर(कैक्ट्स/नागफनी) का दूध एक लीटर पानीमें मिक्स करके घोल में बीज को चार-छ घंटे भिगोकर रखे। उसके बाद बीज की बुवाई करे।

अन्य समस्याएँ

कम फूल
एक एकड़ की फसल हेतु 200 लीटर पानीमें 40 लीटर खट्टी छाछ का छिड़काव पानी के साथ मिश्रित करके करे। ऐसा करने से रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।

10 लीटर छाछ में 5 लीटर पानी मिलाकर एक हफ्ते तक रख दें। फिर ऊपर का पानी अलग निकाल लें। बुवाई के 40 से 45 दिन बाद 2 से 2.5 लीटर निकाला हुया पानी 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़के। इससे फूल अच्छे आते है व उपज बढ़ती है।


मूँगफली की बुवाई करने से पहले ईंट का पाउडर या कुंभार की भट्टी में से मिट्टी का पाउडर एकड़ में 150 से 200 किलो डालकर बुवाई करने से सुया अधिक बेठते है। कटाई के समय फलियाँ कम टूटती है। अगर बुवाई हो चुकी हो तो सुया बेठने से पहले दो कतारों के बीच ईंट का पाउडर डालके गुड़ाई करने से भी फायदा होता है।


कटाई के बाद का आयोजन

आम को पकाना
आम को पकाने हेतु एक बांस की टोकरी लेकर उस में भूसा फैलाकर आम रखे। ऊपर फिर से भूसा फैलाकर ऊपर ओर आम रखे। अंत में टोकरी को फिर से भूसे से ढक कर उसके ऊपर अमलतास के पत्ते रखकर हवारुद्ध तरीके से मिट्टी से लिपे, इस अवस्था में एक सप्ताह तक रखे। इससे आम पीले होकर पकने लगेंगे।

पशु से बचाव

नीलगाय
नीलगाय से नुकसान बचाने हेतु गायका गोबर बाल्टीमें लेकर उसमे पानी मिलाकर पतली रबड़ी / घोल बनाकर झाडू से डाली-पत्ते पर इस गोबर की रबड़ी का छिड़काव करे।

खेतमें दूर तक रोशनी देनेवाली व घूमनेवाली फॉक्स लाइट लगाने से नीलगाय खेतमें नहीं आती।

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